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Reddish Egret, A Little Dance
संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर साल 29 नवंबर को International Day of Solidarity with the Palestinian People यानि फिलिस्तीनी लोगों के साथ एकजुटता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन प्रस्ताव 181 की वर्षगांठ पर मनाया जाता है, जिसमें महासभा ने 29 नवंबर, 1947 को फिलिस्तीन के विभाजन पर संकल्प को अपनाया था
॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण सप्तम स्कन्ध – पाँचवाँ अध्याय..(पोस्ट०५) हिरण्यकशिपु के द्वारा प्रह्लादजी के वध का प्रयत्न श्रीनारद उवाच एतावद्ब्राह्मणायोक्त्वा विरराम महामतिः तं सन्निभर्त्स्य कुपितः सुदीनो राजसेवकः ||१५|| आनीयतामरे वेत्रमस्माकमयशस्करः कुलाङ्गारस्य दुर्बुद्धेश्चतुर्थोऽस्योदितो दमः ||१६|| दैतेयचन्दनवने जातोऽयं कण्टकद्रुमः यन्मूलोन्मूलपरशोर्विष्णोर्नालायितोऽर्भकः ||१७|| इति तं विविधोपायैर्भीषयंस्तर्जनादिभिः प्रह्लादं ग्राहयामास त्रिवर्गस्योपपादनम् ||१८|| नारदजी कहते हैं—परमज्ञानी प्रह्लाद अपने गुरु जी से इतना कहकर चुप हो गये। पुरोहित बेचारे राजा के सेवक एवं पराधीन थे। वे डर गये। उन्होंने क्रोध से प्रह्लाद को झिडक़ दिया और कहा— ॥ १५ ॥ ‘अरे, कोई मेरा बेंत तो लाओ । यह हमारी कीर्ति में कलङ्क लगा रहा है। इस दुर्बुद्धि कुलाङ्गार को ठीक करने के लिये चौथा उपाय दण्ड ही उपयुक्त होगा ॥ १६ ॥ दैत्यवंश के चन्दनवन में यह काँटेदार बबूल कहाँ से पैदा हुआ ? जो विष्णु इस वन की जड़ काटने में कुल्हाड़े का काम करते हैं, यह नादान बालक उन्हीं की बेंट बन रहा है; सहायक हो रहा है ॥ १७ ॥ इस प्रकार गुरुजी ने तरह-तरहसे डाँट-डपटकर प्रह्लाद को धमकाया और अर्थ, धर्म एवं कामसम्बन्धी शिक्षा दी ॥१८॥ शेष आगामी पोस्ट में — गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
श्रीमद्देवीभागवत (ग्यारहवा स्कन्ध) 〰️〰️🌼〰️🌼🌼〰️🌼〰️〰️ अध्याय 24 (भाग 2) ॥श्रीभगवत्यै नमः॥ कामना सिद्धि और उपद्रव शान्ति के लिये गायत्री के विविध प्रयोग… 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ भगवान् नारायण कहते हैं- नारद भूमि पर चतुष्कोण मण्डल लिखकर उसके मध्य-भाग में गायत्री मन्त्र पढ़कर त्रिशूल धँसा दे। इससे भी पिशाचों के आक्रमण से पुरुष बच सकता है। अथवा सब प्रकार की शान्ति के लिये पूर्वोक्त कर्म में ही गायत्री के एक हजार मन्त्र से अभिमन्त्रित करके त्रिशूल गाड़े। वहीं सुवर्ण, चाँदी, ताँबा अथवा मिट्टी का नवीन दिव्य कलश स्थापित करे। उस कलश में छिद्र नहीं होना चाहिये । उसे वस्त्र से वेष्टित कर दे। बालूसे बनी हुई वेदी पर उसे स्थापित करे। मन्त्रज्ञ पुरुष जल से उस कलश को भर दे। फिर श्रेष्ठ द्विज चारों दिशाओं के तीर्थों का उसमें आवाहन करे । इलायची, चन्दन, कर्पूर, जायफल, गुलाब, मालती, बिल्वपत्र, विष्णुक्रान्ता, सहदेवी, धान, यव, तिल, सरसों तथा दूधवाले वृक्ष अर्थात् पीपल, गूलर, पाकड़ और वटके कोमल पल्लव उस कलश में छोड़ दे। उसमें सत्ताईस कुशों से निर्मित एक कूर्च रख दे। यों सभी विधि सम्पन्न हो जाने पर स्नान आदि से पवित्र हुआ जितेन्द्रिय बुद्धिमान् ब्राह्मण एक हजार गायत्री मन्त्र से उस कलश को अभिमन्त्रित करे । वेदज्ञ ब्राह्मण चारों दिशाओं में बैठकर सूर्य आदि देवताओं के मन्त्रों का पाठ करे । साथ ही इस अभिमन्त्रित जल से प्रोक्षण, पान और अभिषेक करे। इस प्रकार की विधि सम्पन्न करने वाला पुरुष भौतिक रोगों और उपचारों से मुक्त होकर परम सुखी हो सकता है। इस अभिषेक के प्रभाव से मृत्यु के मुख में गया हुआ मानव भी मुक्त हो जाता है। विद्वान् पुरुष दीर्घ समय तक जीवन धारण करने की इच्छा वाले नरेश को ऐसा अनुष्ठान करने की अवश्य प्रेरणा करे। मुने! अभिषेक समाप्त हो जाने पर ऋत्विजों को दक्षिणा में सौ गौएँ दे । दक्षिणा उतनी होनी चाहिये, जिससे ऋत्विकगण संतुष्ट हो सकें अथवा जिसकी जैसी शक्ति हो, उसके अनुसार दक्षिणा दी जा सकती है। द्विज शनिवार के दिन पीपल वृक्ष के नीचे गायत्री का सौ बार जप करे। इससे वह भौतिक रोग एवं अभिचार जनित महान् भय से मुक्त हो जाता है। जय माता जी की क्रमश… शेष अगले अंक में डॉ0 विजय शंकर मिश्र:!
Moonwashed Weekly Prompt #134 – 3/14/23 – Dubious
Moonwashed Weekly Prompt #134 – 3/14/23 – Dubious
Are we fading? Are we sailing into a triangle of sadness? Questions on the essence of our personal values as a common organism.
श्री योग वशिष्ठ महारामायण*
प्रथमद्वितीयतृतीयभूमिकालक्षण विचार
भाग-2
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